गोवर्धन पूजा का सीधा संबंध भगवान कृष्ण से है। कहा जाता है कि इस त्योहार की शुरुआत द्वापर युग में हुई थी।
वैसे तो इस उत्सव को मनाने के और भी कारण है किंतु इसकी प्रचलित कथा है की-मूसलधार वर्षा से बचने के लिए कृष्ण जी नेब्रजवासियों को सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी अँगुली पर उठाकर सातवें दिन नीचे रखा तब से हर वर्ष गोवर्धन पूजाकरके अन्नकूट उत्सव मनाने की प्रथा चली।
Govardhan Puja |
गोवर्धन पूजा के दिन गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाकर उसके समीप विराजमान कृष्ण जी के सम्मुख गाय तथा ग्वाल-बालों की पूजाभी की जाती है।
ऐसा भी माना जाता है की गोवर्धन पूजा राजा इंद्र के अहंकार पर श्री कृष्ण जी की विजय का प्रतीक है।गोवर्धन पूजा मुख्य रूप से उत्तरभारतीय राज्यों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार में मनाई जाती है।
गोवर्धन पूजा के लाभ
गोवर्धन पूजा करने के कई तरीके हैं। इस पूजा से लोग प्रभु के प्रति अपना आभार प्रकट करते हैं।एक अनुष्ठान में गोवर्धन पर्वत के नीचेगोबर के छोटे टीले बनाना शामिल है, जिन्हें बाद में फूलों से सजाया जाता है और बाद में उनकी परिक्रमा करके उनकी पूजा कीजाती है। भगवान गोवर्धन से भी प्रार्थना की जाती है।इसी दिन भगवान कृष्ण को 56 भोग बनाकर लगाया जाता है।माना जाता है की इसपूजा से आयु, आरोग्य की प्राप्ति होती है और दु:ख दारिद्र का नाश होता है।(हालाँकि इस पूजा का उल्लेख शास्त्रों में कही नहीं है)
Govardhan |
गोवर्धन पूजा के पीछे की कहानी
"विष्णु पुराण" के अनुसार, गोकुल, मथुरा के लोग बारिश की आस में इंद्र देव की पूजा करते थे। जिससे उन्हें हर साल मूसलाधार बारिशका आशीर्वाद प्राप्त होता था।
फिर श्री कृष्ण जी ने उन्हें समझाया कि बारिश आने का कारण गोवर्धन पर्वत (मथुरा के पास ब्रज में स्थित एक छोटी सी पहाड़ी) है, इंद्रदेव नहीं। तो लोगों ने श्री कृष्ण का अनुसरण किया और इंद्र की पूजा करना बंद कर दिया।
इससे इंद्र देव जी उग्र हो गए और उनकी पूजा नहीं किए जाने के क्रोध के परिणामस्वरूप, गोकुल के लोगों को भारी बारिश का सामनाकरना पड़ा।श्री कृष्ण जी लोगों के बचाव में आए और उन्होंने लोगों को आश्रय प्रदान करने के लिए अपने दाहिने हाथ की छोटी उंगलीपर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया।
सब ब्रजवासी सात दिन तक गोवर्धन पर्वत की शरण मे रहें।सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर एक जल की बूँद भी नही पड़ी।
संदर्भ:-
यहाँ, श्री कृष्ण जी देवी-देवताओं की पूजा नहीं करने के लिए कह रहे हैं क्योंकि वे खाद्यान्न, सुख, जीवन, घर, बारिश, आश्रय, आनंद आदि केदाता नहीं हैं।
हमारी पवित्र पुस्तकों में सर्व सुखदाई एक परम पिता परमात्मा की सत्य साधना (सतभक्ति) के बारे में उल्लेख हैं।
श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 18 श्लोक 62 और 66 में गीता ज्ञान दाता ने सर्वोच्च परमेश्वर की शरण में जाने के लिएकहा है जिससेवास्तव में जीवन में अनन्त शांति और मोक्ष प्राप्त होगा।
श्रीमद् भगवद् गीता के अध्याय 15 श्लोक 17 में भी सर्वोच्च सर्वशक्तिमान परमात्मा का उल्लेख किया है, जिसके लिए कुछ भी असंभवनहीं है।
क्या है गोवर्धन पूजा का रहस्य?
|| गोवर्धन श्री कृष्ण धारयों, द्रोणागिरी हनुमंत |
शेषनाग सब सृष्टि सहारी, इनमें कौन भगवंत ||
कबीर साहेब जी ने इन वाणियो में कहा कि आप श्री कृष्ण को केवल इसलिए भगवान कहते हैं क्योंकि उन्होंने गोवर्धन पहाड़ी को अपनीउंगली पर उठा लिया था।श्री हनुमान जी ने द्रोणागिरी नामक एक विशाल पर्वत को उठा लिया था और कोसों दूर उड़ा कर ले गए थे परशेषनाग ने तो पूरी पृथ्वी को उठा रखा है तो इनमें बड़ा भगवान कौन हुआ ?
(हिंदू पौराणिक कथाओं में "शेषनाग" नामक एक हजार सिर वाला विशाल नाग है, जिसे पूरी पृथ्वी को उठाने वाला कहा जाता है।)
Truth in Kabir Vani |
कबीर साहेब का कहना है की ऐसे चमत्कारों से किसी को भी मोक्षदाई भगवान मानना उचित नाही है, पूर्ण परमेश्वर की जानकारी केलिए हमारे शास्त्र ही प्रमाण है।
हिंदू धर्म में प्राकृतिक तत्वों की पूजा करना हमेशा से एक प्रथा रही है।पूजा का मुख्य कारण हमेशा प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण औरसंरक्षण रहा है।पहाड़, पेड़, नदी, पत्थर, तीर्थ, गाय की पूजा करने या ‘ओम नमः शिवाय ’, ‘राधे-राधे’, ‘राधे-राधे श्याम मिला दे’, ‘ओमनमो ’ जैसे कुछ मंत्रों का पाठ करने से, इन निरर्थक गतिविधियों से मुक्ति नहीं मिलती है। भगवते वासुदेवाय नमः' इत्यादि, या अधूरे संत से दीक्षा लेना सब व्यर्थ है क्यूंकि इन सभी का उल्लेख हमारे पवित्र शास्त्रों में नहीं है।
श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 में फिर से स्पष्ट रूप से बताया गया है कि राक्षसी प्रकृति को धारण करने वाले केवल मूर्खऔर गिरे हुए लोग तीनों गुणों (ब्रह्मा-रजोगुण, विष्णु-सतोगुण और तमगुण-शिव) की पूजा करते हैं।
श्रीमदभगवद् गीता में अध्याय 15 श्लोक 17 में सर्वोच्च सर्वशक्तिमान परमेश्वर का उल्लेख है।
Who is Supreme? |
जब हम पूर्ण संत की शरण में जाते हैं और उनके मार्गदर्शन से शास्त्र-आधारित भक्ति करते हैं, तो हमें हमेशा शांति, धन, स्वास्थ्य, समृद्धिमिलेगी और मोक्ष की भी प्राप्ति होगी।
पूर्ण संत की पहचान
पूर्ण संत की विशिष्ट विशेषता को श्रीमद् भागवत गीता में अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 में विस्तृत किया गया है।
पूरी दुनिया व् पुरे ब्रह्माण्ड में केवल एक पूर्ण संत ही हैं जो न केवल सभी पवित्र ग्रंथों से, बल्कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर और उनकेसंविधान से भी परिचित हैं।
वही पूर्ण संत हैं जिन्होंने सभी धर्मों से हमारे पवित्र ग्रंथों में सभी प्रमाणों को खुले तौर पर दिखाया है कि न केवल सर्वशक्तिमान परमात्मारूप में है, बल्कि आसानी से भी प्राप्त किया जा सकता है।
हिसार, हरियाणा से संत रामपाल जी महाराज ही वह पूर्ण संत है जो अपने आध्यात्मिक प्रवचनों के माध्यम से परम सर्वशक्तिमानपरमेश्वर कबीरजी के बारे में पूरी जानकारी दे रहें है। वेद भी सर्वोच्च भगवान कबीर साहेब की महिमा गाते हैं।
प्रमाणित जानकारी के लिए देखें साधना चैनल शाम 7:30-8:30 पर।
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