Wednesday, August 5, 2020

गोवर्धन पूजा का महत्व


हिंदुओं के शुभ त्योहारों में से एक गोवर्धन पूजा हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को अर्थात दीपावली केअगले दिन मनाईजाती है। लोग इसे अन्नकूट और पड़वा के नाम से भी जानते हैं। अन्नकूट जिसका अर्थ है 'भोजन का पहाड़'  

गोवर्धन पूजा का सीधा संबंध भगवान कृष्ण से है। कहा जाता है कि इस त्योहार की शुरुआत द्वापर युग में हुई थी। 

वैसे तो इस उत्सव को मनाने के और भी कारण है किंतु इसकी प्रचलित कथा है की-मूसलधार वर्षा से बचने के लिए कृष्ण जी नेब्रजवासियों को सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी अँगुली पर उठाकर सातवें दिन नीचे रखा तब से हर वर्ष गोवर्धन पूजाकरके अन्नकूट उत्सव मनाने की प्रथा चली।

Govardhan Puja
Govardhan Puja

 गोवर्धन पूजा के दिन गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाकर उसके समीप विराजमान कृष्ण जी के सम्मुख गाय तथा ग्वाल-बालों की पूजाभी की जाती है। 

ऐसा भी माना जाता है की गोवर्धन पूजा राजा इंद्र के अहंकार पर श्री कृष्ण जी की विजय का प्रतीक है।गोवर्धन पूजा मुख्य रूप से उत्तरभारतीय राज्यों पंजाबहरियाणाउत्तर प्रदेश और बिहार में मनाई जाती है।


 गोवर्धन पूजा के लाभ 


गोवर्धन पूजा करने के कई तरीके हैं। इस पूजा से लोग प्रभु के प्रति अपना आभार प्रकट करते हैं।एक अनुष्ठान में गोवर्धन पर्वत के नीचेगोबर के छोटे टीले बनाना शामिल हैजिन्हें बाद में फूलों से सजाया जाता है और बाद में उनकी परिक्रमा करके उनकी पूजा कीजाती है। भगवान गोवर्धन से भी प्रार्थना की जाती है।इसी दिन भगवान कृष्ण को 56 भोग बनाकर लगाया जाता है।माना जाता है की इसपूजा से आयुआरोग्य की प्राप्ति होती है और दु: दारिद्र का नाश होता है।(हालाँकि इस पूजा का उल्लेख शास्त्रों में कही नहीं है)

Govardhan
Govardhan


 गोवर्धन पूजा के पीछे की कहानी


"विष्णु पुराणके अनुसारगोकुलमथुरा के लोग बारिश की आस में इंद्र देव की पूजा करते थे। जिससे उन्हें हर साल मूसलाधार बारिशका आशीर्वाद प्राप्त होता था।

फिर श्री कृष्ण जी ने उन्हें समझाया कि बारिश आने का कारण गोवर्धन पर्वत (मथुरा के पास ब्रज में स्थित एक छोटी सी पहाड़ीहैइंद्रदेव नहीं। तो लोगों ने श्री कृष्ण का अनुसरण किया और इंद्र की पूजा करना बंद कर दिया।

इससे इंद्र देव जी उग्र हो गए और उनकी पूजा नहीं किए जाने के क्रोध के परिणामस्वरूपगोकुल के लोगों को भारी बारिश का सामनाकरना पड़ा।श्री कृष्ण जी लोगों के बचाव में आए और उन्होंने लोगों को आश्रय प्रदान करने के लिए अपने दाहिने हाथ की छोटी उंगलीपर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया।

सब ब्रजवासी सात दिन तक गोवर्धन पर्वत की शरण मे रहें।सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर एक जल की बूँद भी नही पड़ी।


संदर्भ:- 

यहाँश्री कृष्ण जी देवी-देवताओं की पूजा नहीं करने के लिए कह रहे हैं क्योंकि वे खाद्यान्नसुखजीवनघरबारिशआश्रयआनंद आदि केदाता नहीं हैं।

हमारी पवित्र पुस्तकों में सर्व सुखदाई एक परम पिता परमात्मा की सत्य साधना (सतभक्तिके बारे में उल्लेख हैं।

श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 18 श्लोक 62 और 66 में गीता ज्ञान दाता ने सर्वोच्च परमेश्वर की शरण में जाने के लिएकहा है जिससेवास्तव में जीवन में अनन्त शांति और मोक्ष प्राप्त होगा।

श्रीमद् भगवद् गीता के अध्याय 15 श्लोक 17 में भी सर्वोच्च सर्वशक्तिमान परमात्मा का उल्लेख किया हैजिसके लिए कुछ भी असंभवनहीं है। 


 क्या है गोवर्धन पूजा का रहस्य?


 || गोवर्धन श्री कृष्ण धारयोंद्रोणागिरी हनुमंत  |

 शेषनाग सब सृष्टि सहारीइनमें कौन भगवंत  ||

कबीर साहेब जी ने इन वाणियो में कहा कि आप श्री कृष्ण को केवल इसलिए भगवान कहते हैं क्योंकि उन्होंने गोवर्धन पहाड़ी को अपनीउंगली पर उठा लिया था।श्री हनुमान जी ने द्रोणागिरी नामक एक विशाल पर्वत को उठा लिया था और कोसों दूर उड़ा कर ले गए थे परशेषनाग ने तो पूरी पृथ्वी को उठा रखा है तो इनमें बड़ा भगवान कौन हुआ ?

(हिंदू पौराणिक कथाओं में "शेषनागनामक एक हजार सिर वाला विशाल नाग हैजिसे पूरी पृथ्वी को उठाने वाला कहा जाता है।)


Truth in Kabir Vani
Truth in Kabir Vani


कबीर
 साहेब का कहना है की ऐसे चमत्कारों से किसी को भी मोक्षदाई भगवान मानना उचित नाही हैपूर्ण परमेश्वर की जानकारी केलिए हमारे शास्त्र ही प्रमाण है।

हिंदू धर्म में प्राकृतिक तत्वों की पूजा करना हमेशा से एक प्रथा रही है।पूजा का मुख्य कारण हमेशा प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण औरसंरक्षण रहा है।पहाड़पेड़नदीपत्थरतीर्थगाय की पूजा करने या ‘ओम नमः शिवाय ’, ‘राधे-राधे’, ‘राधे-राधे श्याम मिला दे’, ‘ओमनमो ’ जैसे कुछ मंत्रों का पाठ करने सेइन निरर्थक गतिविधियों से मुक्ति नहीं मिलती है। भगवते वासुदेवाय नमःइत्यादिया अधूरे संत से दीक्षा लेना सब व्यर्थ है क्यूंकि इन सभी का उल्लेख हमारे पवित्र शास्त्रों में नहीं है।

श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 में फिर से स्पष्ट रूप से बताया गया है कि राक्षसी प्रकृति को धारण करने वाले केवल मूर्खऔर गिरे हुए लोग तीनों गुणों (ब्रह्मा-रजोगुणविष्णु-सतोगुण और तमगुण-शिवकी पूजा करते हैं।

श्रीमदभगवद् गीता में अध्याय 15 श्लोक 17 में सर्वोच्च सर्वशक्तिमान परमेश्वर का उल्लेख है।


who is supreme?
Who is Supreme?

जब हम पूर्ण संत की शरण में जाते हैं और उनके मार्गदर्शन से शास्त्र-आधारित भक्ति करते हैंतो हमें हमेशा शांतिधनस्वास्थ्यसमृद्धिमिलेगी और मोक्ष की भी प्राप्ति होगी।


 पूर्ण संत की पहचान 


पूर्ण संत की विशिष्ट विशेषता को श्रीमद् भागवत गीता में अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 में विस्तृत किया गया है।

पूरी दुनिया व् पुरे ब्रह्माण्ड में केवल एक पूर्ण संत ही हैं जो  केवल सभी पवित्र ग्रंथों सेबल्कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर और उनकेसंविधान से भी परिचित हैं। 

वही पूर्ण संत हैं जिन्होंने सभी धर्मों से हमारे पवित्र ग्रंथों में सभी प्रमाणों को खुले तौर पर दिखाया है कि  केवल सर्वशक्तिमान परमात्मारूप में हैबल्कि आसानी से भी प्राप्त किया जा सकता है। 

हिसारहरियाणा से संत रामपाल जी महाराज ही वह पूर्ण संत है जो अपने आध्यात्मिक प्रवचनों के माध्यम से परम सर्वशक्तिमानपरमेश्वर कबीरजी के बारे में पूरी जानकारी दे रहें है। वेद भी सर्वोच्च भगवान कबीर साहेब की महिमा गाते हैं।


प्रमाणित जानकारी के लिए देखें साधना चैनल शाम 7:30-8:30 पर।

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