Saturday, February 9, 2019

संत कबीर साहेब

संत कबीर साहेब 

हम सभी कबीर दास जी को एक प्रसिद्ध संत व् काव्यकार के रूप में जानते है। लेकिन संत कबीर दास जी से जुड़े आज भी कई ऐसे महत्वपूर्ण राज़ है जिससे दुनिया अनजान है। वास्तव में कबीर साहेब पूर्ण परमात्मा है जो सभी आत्माओ के जनक है, वे हर युग में अपनी आत्माओ को चेताने व् सही भक्ति मार्ग बताने के लिए एक संत व् कवी की भूमिका करते है, उन्हें सत्ज्ञान बताने के लिए अवतरित होते है।
600 वर्ष पूर्ण भारत, कशी शहर की पवित्र भूमि पर संत कबीर दास जी का प्राकटय हुआ था।विक्रमी संवत् 1455 (सन् 1398) ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा सुबह-सुबह ब्रह्ममुहुर्त में वह पूर्ण परमेश्वर कबीर (कविर्देव) जी स्वयं अपने मूल स्थान सतलोक से आए। काशी में लहर तारा तालाब के अंदर कमल के फूल पर एक बालक का रूप धारण किया। 


इस विषय में सन्त रामपाल जी महाराज ने शास्त्र प्रमाणित विस्तृत जानकारी दी है, उन्होंने बताया की परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) वेदों के ज्ञान से भी पूर्व सतलोक में विद्यमान थे तथा अपना वास्तविक ज्ञान (तत्वज्ञान) देने के लिए चारों युगों में भी स्वयं प्रकट हुए हैं। सतयुग में सतसुकृत नाम से, त्रेतायुग में मुनिन्द्र नाम से, द्वापर युग में करूणामय नाम से तथा कलयुग में वास्तविक कविर्देव (कबीर प्रभु) नाम से प्रकट हुए हैं। 

"सतयुग में सतसुकृत कह टेरा, त्रेता नाम मुनींद्र मेरा।
द्वापर में करुणामय कहाया, कलयुग नाम कबीर धराया।” ( kabir ke dohe )

वेदो में प्रमाण: 

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 17 में वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि विलक्षण मनुष्य के बच्चे के रूप में प्रकट होकर पूर्ण परमात्मा कविर्देव अपने वास्तविक ज्ञानको अपनी कविर्गिभिः अर्थात् कबीर बाणी द्वारा निर्मल ज्ञान अपने हंसात्माओं अर्थात् पुण्यात्मा अनुयाइयों को कवि रूप में कविताओं, लोकोक्तियों के द्वारा सम्बोधन करके अर्थात् उच्चारण करके वर्णन करता है। वह स्वयं सतपुरुष कबीर ही होता है।

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 में कहा है कि कविर्देव शिशु रूप धारण कर लेता है। लीला करता हुआ बड़ा होता है। कविताओं द्वारा तत्वज्ञान वर्णन करने के कारण कवि की पदवी प्राप्त करता है अर्थात् उसे ऋषि, संत व कवि कहने लग जाते हैं, वास्तव में वह पूर्ण परमात्मा कविर् ही है।

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 19
पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ऊपर तीसरे धाम अर्थात् सत्यलोक में रहता है तथा वही परमेश्वर अन्य मनुष्य रूप धारण करके चैथे धाम अर्थात् अनामी लोक में रहता है। वही परमात्मा वैसा ही मनुष्य वाला समरूप सुन्दर मुखमण्डल युक्त श्वेत शरीर युक्त आकार में यहाँ पृथ्वी लोक पर भी आता है तथा अपनी वास्तविक पूजा विधि का ज्ञान करवा कर बहुत सारे समूह को अर्थात् पूरे संघ को सत्यभक्ति के धनी बनाता है



संत रामपालजी महाराज ने बताया है की परमेश्वर कबीर साहेब का पांच तत्त्व से बना शरीर नहीं है वह परमेश्वर स्वयंभू है।
पूर्ण परमेश्वर कविर्देव् (कबीर) ने काशी में लहरतारा नामक तालाब के जल में कमल के फूल पर स्वयं प्रकट होकर बालक रूप बनाया था। वहाँ से उन्हें नीरू नामक जुलाहा उठा कर ले गया था। उस परमेश्वर की परवरिश कुँआरी गाय से हुई थी।

हाड चाम लहू नहीं मेरे, कोई जाने सतनाम उपासी।
तारण तरण अभय पद दाता, मै हूँ कबीर अविनाशी।।

वेदों में कविर्देव, गुरु ग्रन्थ साहेब में हक्का कबीर तथा कुरान शरीफ में अल्लाह कबीरन्) नाम से कबीर सहेब के पूर्ण परमात्मा होने की सम्पूर्ण जानकारी है




प्रमाण:

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9 में प्रमाण है की पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआ बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है उस समय कंवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरीष होती है।

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 20 में प्रमाण है की पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ऊपर तीसरे धाम अर्थात् सत्यलोक में रहता है तथा वही परमेश्वर अन्य मनुष्य रूप धारण करके चैथे धाम अर्थात् अनामी लोक में रहता है। वही परमात्मा वैसा ही मनुष्य वाला समरूप सुन्दर मुखमण्डल युक्त श्वेत शरीर युक्त आकार में यहाँ पृथ्वी लोक पर भी आता है तथा अपनी वास्तविक पूजा विधि का ज्ञान करवा कर बहुत सारे समूह को अर्थात् पूरे संघ को सत्यभक्ति के धनी बनाता है, असंख्य अनुयाइयों का पूरा संघ सत्य भक्ति की कमाई से पूर्व वाले सुखमय लोक पूर्ण मुक्ति के खजाने को अर्थात् सत्यलोक को साधना करके प्राप्त करता है।

पवित्र यजुर्वेद अध्याय 1 मंत्र 15 तथा अध्याय 5 मंत्र 1  32 में स्पष्ट किया है कि ‘‘{अग्नेः तनूर् असिविष्णवे त्वा सोमस्य तनुर् असिकविरंघारिः असिबम्भारिः असि स्वज्र्योति ऋतधामा असि}परमेश्वर का शरीर हैपाप के शत्रु परमेश्वर का नाम कविर्देव हैवही बन्धनों का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है, उस सर्व पालन कत्र्ता अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष का शरीर है वह स्वप्रकाशित शरीर वाला प्रभु सतधाम अर्थात् सतलोक में रहता है। 



यही नहीं और भी अनेको वेद मंत्र, गीता, पुराण, कुरान शरीफ, बाइबल, गुरूग्रंथ साहेब, कबीर सागर, तथा सभी संतो की वानीयो में ये साफ वर्णित है की परमात्मा साकार है, कबीर साहेब जो काशी मे जुलाहे रूप मे आये थे वो ही जगतगुरू है वो ही पूर्णब्रह्म, परमअक्षरब्रह्म है, वो ही वाहेगुरू, अल्लाह हु अकबर है।

हम ही अलख अल्लाह है, कुतुब गौस और पीर।
गरीबदास खालिक धणी, हमरा नाम कबीर॥ 
kabir ke dohe


मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर) की सतभक्ति कर उस शाश्वत परम धाम अर्थात सतलोक को प्राप्त होना है जहाँ से लौट कर साधक फिर इस मृत्यु लोक में नहीं आते जहाँ 84 लाख योनियों का कष्ट भोगना पड़ता हो।

"कबीर, हम वासी उस देश के, जहाँ आर पार का खेल।
दीपक वहाँ हरदम जले, बिन बाती बीन तेल।।

"कबीर का घर शिखर मेंजहाँ सलैली गैल।
पाँव ना टिकैं पपील (चींटीकेपंडित लादै बैल।।"



इस अविनाशी पूर्ण परमात्मा को पाने की सम्पूर्ण विधि सिर्फ तत्वदर्शी संत ही बता सकता है, जो वर्त्तमान में संत रामपालजी महाराज के अतिरिक्त और कोई नहीं है। 



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