Wednesday, July 15, 2020

कावड़ यात्रा | Kanwar Yatra


हर साल श्रावण मास में लाखों की तादाद में कांवडिये सुदूर स्थानों से पदयात्रा करके गंगा जल से भरी कांवड़ लेकर आते है और श्रावण की चतुर्दशी के दिन उस गंगा जल से शिव मंदिरों में शिव का अभिषेक किया जाता है। 
श्रावण महीने की इस कांवड़ यात्रा को लेकर अलग-अलग धारणाएं हैं। कुछ लोगों के अनुसार, परशुराम पहले कांवड़िये थे, तो कुछ ने श्रवण कुमार को त्रेतायुग का सबसे पहला कांवड़िया बताया। प्रचलित मान्यता है की श्री रामचन्द्र जी पहले कांवड़िये थे और ऐसी मान्यता भी है कि रावण ने सर्वप्रथम इस परंपरा की शुरुआत की थी। आज भी श्रद्धालु उपरोक्त मान्यताओं के आधार पर ही इस परंपरा का पालन कर रहे हैं।

लेकिन प्रश्न ये उठता है की-
कावड़ यात्रा करने से क्या हमे सुख, शांति, मोक्ष प्राप्त हो सकता है?
क्या कावड़ यात्रा कर गंगा जल लाना शास्त्र अनुसार साधना है?
क्या शिवलिंग पर गंगा जल चढाने का प्रावधान गीता या वेदों में वर्णित है?
आदि, तो आइये जानते है-

कावड़ यात्रा | Kanwar Yatra
Kanwar Yatra 2020

 कावड़ यात्रा करना पुण्य है या पाप-


वास्तविकता में शास्त्रों में कावड़ यात्रा करने, शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाने आदि कर्मकांड करने का कहीं भी प्रावधान नहीं है। यह प्राचीन काल से मान्यताओं के आधार पर देखा देखी में चली आरही प्रथा है जिसे करने का कोई लाभ नहीं है। उल्टा पुण्य कमाना तो दूर कोसों दूर चल कर जाने से, पैरो तले सूक्ष्म जीवों को मारने के पाप के भागी और बनते है।
“कबीर, पापी मन फूला फिरे मैं करता हूं रे धर्म।

कोटि पापकर्म सिर ले चला, चेत न चिन्हा भ्रम।।”

बरसात के दिनों में अनेक सूक्ष्मजीव बिलों से बाहर निकल धरती पर आ जाते हैं ऐसे में कांवड़ यात्री पुण्य कमाने के उद्देश्य से पैदल चलता है तो उनके पैरों के नीचे करोड़ों सूक्ष्मजीव मर जाते हैं जिसका पाप उनके सिर पर रखा जाता है। 

कावड़ यात्रा | Kanwar Yatra
Kanwar yatra 


कबीर साहिब ने कहा है:- "करत है पुण्य, होत है पापम् ।"
वह पुण्य कमाने शिवजी को प्रसन्न करने चला था और करोड़ों जीव हत्या का पाप अपने सिर ले आया।

क्या कावड़ यात्रा शास्त्र अनुकूल है ?


कावड़ यात्रा वास्तविकता में शास्त्र विपरीत भक्ति है जिससे लोगों को भक्ति करते हुए भी कोई आध्यात्मिक लाभ नहीं हो रहा।

(गीता जी अध्याय 16 श्लोक 23 में प्रमाण है के जो व्यक्ति शास्त्रविधि को त्याग कर मनमाना आचरण करते है उनको ना तो कोई सिद्धि, मोक्ष तथा कोई सुख प्राप्त नहीं होता।अर्थार्थ शास्त्र विरुद्ध की गई सभी भक्ति, साधना आदि व्यर्थ है।)

कावड़ यात्रा | Kanwar Yatra
Kanwar yatra facts


गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 तक में कहा गया है कि जो भी तीनों गुणों से (रजगुण-ब्रह्मा से जीवों की उत्पत्ति, सतगुण-विष्णु जी से स्थिति तथा तमगुण-शिव जी से संहार) जो कुछ भी हो रहा है उसका मुख्य कारण मैं (ब्रह्म/काल) ही हूँ। (क्योंकि, काल को एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों के शरीर को मार कर मैल को खाने का श्राप लगा मिला हुआ है) जो साधक मेरी (ब्रह्म की) साधना न करके त्रिगुणमयी माया (रजगुण-ब्रह्मा जी, सतगुण-विष्णु जी, तमगुण-शिव जी) की साधना करके क्षणिक लाभ प्राप्त करते हैं जिससे ज्यादा कष्ट उठाते रहते हैं, साथ में संकेत किया है कि इनसे ज्यादा लाभ मैं (ब्रह्म-काल) दे सकता हूँ, परन्तु ये मूर्ख साधक तत्वज्ञान के अभाव से इन्हीं तीनों गुणों (रजगुण-ब्रह्मा जी, सतगुण-विष्णु जी, तमगुण-शिव जी) तक की साधना करते रहते हैं। इनकी बुद्धि इन्हीं तीनों प्रभुओं तक सीमित है। इसलिए ये राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए, मनुष्यों में नीच, शास्त्र विरूद्ध साधना रूपी दुष्कर्म करने वाले, मूर्ख मुझे (ब्रह्म/काल को) ही भजते हैं।

यदि किसी तीर्थ या धाम पर जाने से भगवान खुश होते तो केदारनाथ और नीलकंठ जैसी भयानक दुर्घटनाये नहीं होतीं। अगर श्रद्धालु के साथ कुछ अच्छा होता भी है तो यह मनुष्य का अपने प्रारब्ध का कर्म फल ही होता है जिसे अपने इष्ट की कृपा मान लिया जाता है लेकिन पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर) के अलावा प्रारब्ध के पाप क्षमा करने की सामर्थ्य किसी अन्य देवता में नहीं है।

कावड़ यात्रा | Kanwar Yatra
Kedarnath tragedy

प्राचीन समय में सावन के महीने में साधु-संत घर से बाहर नहीं निकलते थे क्योंकि उनका मानना था कि श्रावण (सावन) के महीने में बारिश का मौसम होता है और ज्यादातर जीव, जंतु मिट्टी में चिपके रहते हैं जो पाँव के नीचे दबकर मरते हैं। इसी पाप से बचने के लिए इस महीने साधु-संत अपने घर में ही भक्ति किया करते थे। लेकिन वर्तमान नकली धर्म के ठेकेदारों ने कावड़ यात्रा की प्रथा शुरू कर दी, जिससे पैदल यात्रा  करने से सड़कों पर असंख्य जीवों की पैरो तले हत्या होती है,  इन्हीं पापों को ब्रह्म (काल) भक्तों के ऊपर डाल देता है यही आगे उनके नाश का कारण बन जाता है। 

कावड़ यात्रियों के उत्पाद, भक्तो के लक्षण नहीं।

यह भी हमेशा देखा गया है की कावड़ियों की हिंसाओं की खबरे सुर्खियों में रहती है। ये उत्पात मचाते है तोड़ फोड़ करते है। इनका मकसद आस्था कम उपद्रव फैलाना ज़्यदा होता है।ये किसी कानून का पालन नहीं करते, कावड़ लाते वक़्त चिलम, सुल्फा, शराब आदि का सेवन करते है, भांग और गांजे के नशे में धुत कई कांवड़ियों की यात्रा के दौरान दुर्घटना में कई मौतें भी हो चुकी है।, आखिर इससे ज़्यदा और क्या मिल सकता है ऐसी शास्त्र विरुद्ध भक्ति से?

कावड़ यात्रा | Kanwar Yatra
Kanwar yatra tragedy

नकली धर्मगुरुओं, अज्ञानी पंडितों ने समाज में ऐसी शास्त्रविरुद्ध, गलत साधनाये व् क्रियाएं फैला कर आज हम सभी को भगवान से दूर कर दिआ है, जिस भक्ति से कोई लाभ ना हो वो भक्ती विधि ही गलत जानें।


कबीर जी की वाणी है-
"वेद पढे पर भेद न जाने, ये बांचै पुराण अठारा ।जड़ को अंधा पान खिलावै, ये भूलै सिरजनहारा ॥"

सतभक्ति से ही लाभ संभव है-


वेदों में प्रमाण है कि पूर्ण परमात्मा कबीर जी ही पूजा के योग्य हैं तथा ब्रह्मा, विष्णु, शिव जी तो नाशवान प्रभु है उनकी भक्ति पूर्ण मोक्षदायक नही है। प्रमाण:- शिव महापुराण पृष्ठ सं. 24 से 26 विद्ध्वेश्वर संहिता तथा पृष्ठ 110 अध्याय 9 रूद्र संहिता।

कावड़ यात्रा | Kanwar Yatra
Hindi gods


अतः सभी मानव समाज से हमारी प्रार्थना है कि मनुष्य जीवन बहुत अनमोल है जो हमें सतभक्ति करके मोक्ष प्राप्त करने के लिए प्राप्त हुआ है। यदि समय रहते पूर्ण गुरु (सतगुरु) धारण करके कबीर साहेब की सतभक्ति नहीं की तो अंत समय में पछताने के अलावा कुछ हाथ नहीं लगेगा।

वर्तमान में संत रामपालजी महाराज ही एकमात्र संत है जो बिलकुल शास्त्रानुसार सतभक्ति विधि बता रहें है जिससे हमारा मनुष्य जन्म सार्थक बन सकता है व् मोक्ष प्राप्त हो सकता है।
इस सतभक्ति से साधकों को अद्भुत भौतिक और आध्यात्मिक लाभ भी हो रहे हैं।

प्रमाणित जानकारी के लिए प्रतिदिन देखें साधना चैनल शाम 7.30-8.30 पर।



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Saturday, July 11, 2020

शंका समाधान

शंका समाधान 

प्रश्न-
जगत के लोग प्रश्न करते हैं संत रामपाल जी के भगत एनिवर्सरी बर्थडे त्यौहार पार्टीज में क्यों नहीं जाते, सेलीब्रेट क्यों नहीं करते?

जगत का मानना है कि मरना एक दिन सबको है पर उससे पहले छोटी-छोटी खुशियाँ सेलिब्रेट ना करके रोजाना क्यों मरते हो?

शंका समाधान-
संत रामपाल जी महाराज सत्संग में बताते है कि जगत और भगत के विचारों में हमेशा से ही विरोध रहा है। जगत अपने स्तर की बुद्धि और विवेक से सोचता है और भगत ज्ञान आधार से सोचकर कार्य करता है और जीवन जीता है।
जगत सोचता है कि छोटी छोटी खुशियां मनाने से भक्ति में क्या परहेज है?

सबसे पहले हमें यह जानना होगा कि सुख और दुख की परिभाषा क्या है।
सुख वो है जिससे आत्मिक खुशी, शांति और संतोष मिले।
इच्छाओं और विकारों से प्रेरित प्रत्येक कार्य दुख है। इच्छाओं की पूर्ति में जगत अपना सुख चैन शान्ति खो देता है वही उसका दुख है।

मन का स्वभाव है तमाम तरह की इच्छाएँ पैदा करना और एक इच्छा पूर्ति के बाद दूसरी‌ नयी-नयी इच्छाएँ जागृत करना। मनुष्य की इच्छाएँ ही उसके दुख का सबसे बड़ा कारण है। लोगों की तमाम इच्छाएं बड़ा घर बनाए, बड़ी गाड़ी खरीदे, अपार बैंक बैलेंस बनाएं, अपना नाम कमाएं इत्यादि तमाम इच्छाएँ मनुष्य को हमेशा दुखी और अशांत रखती है। इनकी पूर्ति में ही वह दिन-रात कोल्हू के बैल की तरह घिसता रहता है।
यहाँ विचार करने वाली बात है प्रत्येक व्यक्ति की सभी चीजें प्राप्त करने की इच्छाएँ और लगन होती है लेकिन जो उसके भाग्य में निर्धारित होता है वही उसको मिलता है। अज्ञानता में वह इच्छाओं की पूर्ति के लिए भाग्य से अधिक पाने की कोशिश करता है और हमेशा दुखी और बैचेन रहता है।

मनुष्य की इच्छाएँ ही उसका सबसे बड़ा बोझ है जिसे वह जीवन भर ढोता रहता है और दुखी होता रहता है। जगत को यह ज्ञान नहीं होता कि उनकी तमाम इच्छाएं ही उसके दुख अशांति और बैचेनी का मूल कारण है। इच्छाओं की पूर्ति करने में ही मनुष्य सारा जीवन दौड़भाग करता है, चोरी झूठ कपट करने को तैयार रहता है। इच्छाएँ मनुष्य का गला घोटती है।
इच्छाएं और विकार मनुष्य को हमेशा परेशान रखते है। इससे बचने का उनके पास कोई उपाय नहीं है।
इच्छाओं और विकारों से उत्पन्न दुख ही मानव का गला घोटते है, पल-पल दुखी करते है और मारते हैं। इन विकारों से उत्पन्न दुख, असंतोष, निराशा और बेचैनी से दूर होने के लिए वह जीवन में छोटी-छोटी खुशियां ढूंढते हैं और उन्हें सेलीब्रेट कर स्वयं को सुखी समझते है, पर लोग यह भूल जाते हैं कि इस काल लोक में कोई भी सेलिब्रेशन त्यौहार उत्सव पार्टीज आपको सुखी नहीं कर सकती। बाहर से खुश होने का ढोंग अवश्य करते है पर अंदर से सबके आग लगी हुई है। 

एक बार गुरू नानकदेव जी से उनके शिष्य ने कहा कि आप खुश कब होते हो तो नानक‌ जी ने कहा कि इस गंदे लोक में किस चीज की खुशी मनाऊं यहां पर सबके सिर पर मौत नाच रही है... कब किसके साथ क्या घटना घटित हो जाए तो किस चीज की खुशी मनाऊं..

ना जाने काल‌ कि कर डारे, किस विध ढल‌ जा‌ पासा वे।
जिन्हानुं सिर पर मौत खुडदगी, उन्हानुं कैसा हांसा वे।।

रोजाना समाचार पत्रों में खबरें पढ़ने को मिलती है कि त्यौहार पार्टी उत्सव मनाने गए हुए लोग किसी हादसे दुर्घटना और आपदा के शिकार होकर मर गये। जिस झूठी खुशी को वह मनाने गए थे वहीं उनकी मौत का जरिया बन गयी। जरा विचार करे यहां मनुष्य कौनसी खुशियां ढूंढने को तत्पर रहता है और जो लोग सेलिब्रेशन करके खुशियां मना रहे हैं उनके पास बचाव का कोई साधन नहीं है तो वह कितने दिन तक झूठी खुशी मना पाएंगे? जगत के लोग झूठी खुशी को पाने के पीछे भागते रहते है और पल-पल मरते है- जैसे कस्तूरी वाला मृग उसकी खुशबू से प्रभावित होकर उसे ढूंढने के लिए जगह-जगह भटकता रहता है पर उसकी नाभि में छुपी कस्तूरी को वह ढूढ़ नहीं पाता जिस कारण हमेशा परेशान और बेचैन रहता है, यही स्थिति जगत के लोगों की है।



क्या बर्थडे एनिवर्सरी त्यौहार या पार्टी मनाने से स्थाई रूप से खुशी मिल जाएगी?? सेलिब्रेशन करने मात्र से कोई खुशियां नहीं मिलती। यदि इन चीजों से वास्तव में खुशियां मिलती तो संत जी इन्हें सेलीब्रेट का आदेश भगत समाज को जरूर देते। 



भक्तों की असली खुशी उनकी भक्ति है। भक्ति करने से भगत को आत्मिक सुख शांति और संतोष मिलता है। यही जीवन का सबसे बड़ा सुख है। मर्यादा में रहकर सत् भक्ति करने से भगत की इच्छाएं और विकार दब जाते है उन्हें परेशान नहीं करते जिस कारण से उन्हें संतोष और शांति मिलती है, यही भगतों की खुशी है। ज्ञान और भक्ति से उनकी इच्छाएं दब जाती है ना बड़ा घर चाहिए, ना बड़ी कार, ना बैंक बैलेंस करना और ना ही इस झूठे लोक में अपना नाम कमाना। वे भगवान की भक्ति करके और ज्ञान पर आधारित होकर हमेशा खुश रहते है।
परमात्मा बताते है...
कबीर, चाह मिटी चिंता गयी, मनुवा बेपरवाह।
जिसको कुछ नहीं चाहिए, सो जग शहंशाह।।

गरीब, अकल अलूने दिखते, ये सर्व अकल‌ के‌ मूल।
हरदम रटै हरिनाम को, ये झूले अनहद झूल।। 

भगत भक्ति करके हमेशा राम नाम के झूले में झूलता है खुशी मनाता है। यही उनकी खुशी है और नशा है। भक्ति करने पर जो खुशी और नशा होता है वह जगत के किसी कामों में नहीं होता। यह बात जगत के लिए समझना कठिन हो सकता है।

नानक जी ने कहा कि...
नाम खुमारी नानका, या चढी रहे दिन-रात।
आफू छूतरा और शराब, उतर जात प्रभात।। 

भक्ति करने पर परमात्मा जरूरते पूरी करता है तब अधिक पाने की इच्छाएँ नहीं रहती। भगत को परमात्मा यहां पर भी सुख देता है और मृत्यु पश्चात् सतलोक में भी अपार सुख देगा।
और जो भक्ति नहीं करता उसे काल भगवान यहां पर भी पल-पल दुख देता है और मरने के बाद गधा बनाकर महादुख देता है।

इस गंदे लोक और यहां के झूठे सुख-दुख से पीछा छुड़वाकर सदा-सदा के लिए सतलोक में जाना ही हमारा परम उद्देश्य है वही हमें परम सुख और स्थायित्व मिलेगा।

Wednesday, July 8, 2020

मानव जीवन की वास्तविक परिभाषा।


मानव शरीर भगवान की सर्वश्रेष्ठ रचना है। मानव योनि 84 लाख अन्य योनियों के शरीर को भोगने के बाद नसीब होती है, इस शरीर को पाने के लिए स्वर्ग में बैठे देवता भी तरसते है क्यूंकि मानव शरीर से ही हम भक्ति कर इस जन्म और मृत्यु के चक्र से सदा के लिए मोक्ष प्राप्त कर सकते है।

मानव जन्म का परम कर्तव्य सिर्फ और सिर्फ परमात्मा की शस्त्राधारित भक्ति करके मोक्ष प्राप्त करना है। जिसे हम सांसारिक जीवन जीने में व्यर्थ कर देते है और फिर से अन्य योनियों के शरीर में भटक कर महाकष्ट उठाते है।




मानव जीवन का वास्तविक स्वरुप कैसा होना चाहिए ?


1.    मनुष्य में सदैव भगवान् का डर होना ज़रूरी है-

देखा जाये तो आज के समय में सबसे अधिक दयालु भी मानव है और सबसे अधिक घातक भी मानव योनि ही है। मानव के दयालु और घातक होने में सबसे बड़ा हाथ है अध्यात्म का और फिर परिस्थिति, संस्कारों व् संगती का।
कोई भी मानव जन्म से अपराधीक व्यक्तित्व का नहीं होता, उसे ऐसा उसकी परिस्थितियां, संस्कार व् बुरी संगती बनाती है, अगर किसी व्यक्ति में आध्यात्मिकता है, उसे भगवान् का डर है तो वह कभी भी बुरे कर्म नहीं कर सकता चाहे वह व्यक्ति गुनहगारों के बीच में ही पला बड़ा क्यों नहीं हो।

चीन देश में आधे से ज़्यदा लोग नास्तिक है जिसकी वजह से आज वह विश्व का सबसे आपराधिक गतिविधि वाला देश है। पाकिस्तान आदि मुस्लमान देशो में अध्यात्म तो है लेकिन वह शास्त्रोक्त ना होने से लाभकारी नहीं है, इसलिए वहाँ भी आतंकवाद जैसी गतिविधियां ज़्यादा है। खुदा ने कभी किसी को मांस खाने का आदेश नहीं दिया, फिर भी मुस्लमान धर्म में मांस नियमित तौर पर खाया जा रहा है जिसकी वजह से गलत अध्यात्म ज्ञान भी हानि का कारण बन रहा है।

कहने का तात्पर्य है की शास्त्रोक्त भक्ति साधना से भगवन का डर उत्पन्न होता है, भयभीत इंसान मन कर्म वचन से कभी किसी का बुरा नहीं करता। वह सद्गुणों, सदाचारो व् सत्संग का साथ करने वाला होता है। इसलिए स्वयं को अध्यात्म की ओर ले जाना मानव जीवन का प्रथम उद्देश्य होना चाहिए।




2.    दयालु व् भला करने वाला-

इंसान का सबसे अनमोल गुण है की सदा दुसरो के लिए दया व् भला करने का भाव रखें। दूसरों की मदद करने के लिए, दूसरे को समझने की कोशिश करें और लोगों की समस्याओं को अपनी आँखों से देखें और उनकी मदद करने की हर मुमकिन कोशिश करें।
भले इंसान का कोई शत्रु नहीं होता, ऐसे व्यक्ति समाज में इज़्ज़त के पात्र होतें है।




3.    दानी व् परोपकारी-

दानी व् परोपकारी होने के लिए आपको एक अमीर व्यक्ति होने की आवश्यकता नहीं है, यहां तक ​​कि एक गरीब व्यक्ति भी किसी की मदद करके या उसके भोजन आदि को साझा करके मानवता की बुवाई कर सकता है। अपने लिए तो हर कोई जीता है लेकिन दुसरो के दुःख में हाथ बटाना दुनिया का सबसे परोपकार का काम है।जो भूके व्यक्ति को भोजन आदि का दान करता है वह सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति है।




4.    बुरी आदतों व् लातों से दूर-

अच्छा व्यक्ति बुरी आदतें शराब, तम्बाकू, सुलफा, गांजा, अफीम आदि व्यसनों के सेवन से दूर रहता है। शराब पीकर समाज में हुड़दंग मचाना, बीवी बच्चों को मारना पीटना एक सभ्य मानव के लक्षण नहीं है। ऐसे व्यक्तियों को मृत्यु उपरांत घोर से घोर पाप से गुज़ारना पड़ता है ।
अच्छे स्वाभाविक व्यक्ति समाज में प्रेरणा स्रोत होतें है, वे चोरी, रिश्वतखोरी, दहेज़ लेंन देंन जैसी कुप्रथाओं तक का खंडन करने में ज़रा भी नहीं हिचकिचाते।




5.    सभ्य, समझदार व् सच्चा व्यक्तित्व-

हर धर्म हमें मानवता, शांति और प्रेम के बारे में बताता है यही कारण है कि कोई भी धर्म मानवता से ऊंचा नहीं है।
मानव धर्म में सच्चे व्यक्तित्व का होना सबसे अहम् उसूल है। अच्छा इंसान ना केवल धैर्य पूर्वक बोलता है बल्कि उसकी बोली में मिठास भी होती है।समझदारी भी उसकी बोली में झलकती है।
अच्छा इंसान ना सिर्फ सत्य का साथ देने वाला होता है। बल्कि उसके चलने, फिरने, उठने, बैठने, बोलने, देखने में भी साधूता होती है।
आज पश्चिमी प्रवर्ति से घ्रस्त समाज में छोटे बड़े का आदर नहीं रहा ना कपडे पहनने का ढंग रहा, जैसा देश हो वैसा भेष होना अति आवश्यक है जिससे उस देश की संस्कृति व् सभ्यता पर कोई आंच नहीं आये।
अच्छे व् सच्चे व्यक्ति को सभ्यता का अनुसरण करना चाहिए।


कैसे पाए मानवता के सभी प्रमुख गुण-


ईश्वर ने मानव देह को पाँच तत्वों से एक जैसा बनाया है। हम सभी आत्माएं एक परमात्मा की अंश है। आज इंसान एक जैसा होने के बावजूद मानवता को छोड़कर, इंसान के द्वारा बनाये गए धर्मों के भेद-भाव के रास्ते पर निकल पड़ा है।
जिसके चलते एक इंसान किसी दूसरे इंसान की ना तो मज़बूरी समझता है और ना ही उसकी मदद ही करता है। यहाँ पर इंसानियत पर धर्म की चोट पड़ती है। लोग इंसानियत को छोड़कर अपने ही द्वारा रची गई धर्मों की बेड़ियों में जकड़े जा रहे हैं। इंसान धर्म की आड़ में अपने अंदर पल रहे वैर, निंदा, नफरत, अविश्वास, उन्माद और जातिवादी भेदभाव के कारण अभिमान को प्राथमिकता दे रहा है। जिससे उसके भीतर की मानवता दम तोड़ रही है।
इंसान मोक्ष पाने के अपने मूल उद्देश्य से भटक गया है और तो और अपने परमपिता परमात्मा को भी भूल गया है। इन सबके चलते मानव के मन में दानवता का वास होता जा रहा है।

मानव जीवन का पुनरुत्थान सिर्फ और सिर्फ पूर्ण गुरु बनाकर शास्त्रोक्त सतभक्ति करने से संभव है।

वर्तमान में सिर्फ संत रामपालजी महाराज ही ऐसे एक मात्र गुरु है जिन्होंने वास्तव में मनुष्य जन्म जीने का सही तरीका बताया है।

संतजी का नारा है-

जीव हमारी जाती है, मानव धर्म हमारा।
हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई धर्म नहीं कोई न्यारा।।

संत रामपालजी महाराज के बताये आध्यात्मिक ज्ञान से आज लाखो करोड़ो लोगो को जीने की नयी राह मिली है। संतजी के बताये आध्यात्मिक ज्ञान से उनका कोई अनुयायी शराब, तम्बाकू, गुटखा आदि व्यसनो का सेवन करना तो, उन्हें दूर छूता तक नहीं है।



समाज में दहेज़ नाम की कुप्रथा बेटियों को नारकीय जीवन जीने के लिए विवश करती आई है। इसे जड़ से सिर्फ संत रामपालजी महाराज द्वाराबताये आध्यात्मिक सत्संग ही ख़तम कर सकतें है। संत रामपालजी महाराज के सत्संगो से पताचला की दहेज़ लेने व् देने का कोई लाभ नहीं है। किसी को भी अपने भाग्य से ज़्यादा नहीं मिल सकता, अगर कोई माता पिता अत्यधिक पैसा या दहेज़ देकर बेटी को विदा करते है तो वह उसके भाग्य में ना होने के कारण, हानी का कारण बन जाता है। संत जी के बताये शास्त्रानुसार आध्यात्मिक ज्ञान के प्रभाव से देश में अब गुरुवाणी द्वारा हजारो दहेज़ रहित शादियाँ होने लगी है।



यही नहीं संतजी का कोई अनुयायी धर्म, जाती, ऊंच नीच आदि को लेकर किसी के साथ भेद भाव नहीं करता। सभी एक दूसरे से प्रेम व् भाईचारे का व्यवहार रखते है। उपरोक्त बताएं सभी मानव गुणों से संतजी के अनुयायी परिपूर्ण है।

संतजी ने हमें ना सिर्फ मनुष्य जन्म की वास्तविक परिभाषा का ज्ञात करवाया है बल्कि उस पर चलने का अपनी पुस्तक "जीने की राह" में सही मार्ग दर्शन भी दिया है।

संतजी के बताये आध्यात्मिक ज्ञान ना सिर्फ मनुष्यता पनपती है बलिक इस जन्म और मृत्यु के चक्र से पूर्ण मोक्ष होना भी गारंटीड है।



अधिक जानकारी के लिए देखें-
"साधना चैनल" प्रतिदिन शाम 7:30 पर।
ईश्वर टीवी" प्रतिदिन रात्री 8:30 पर।

हमारी वेबसाइट पर भी जा सकतें है।

Wednesday, July 1, 2020

How can we build a good society?

What makes a good society?


Our society was very peaceful in the years before the 20th century.
Especially the citizens of India were full of the qualities of humanity, compassion, mercy, despite being almost illiterate, they had all the qualities that a human should possess.
After 1970, the decline of humanity has happened at such a rapid pace that inconsistent things started appearing. The more education has grown, the more humanity has decreased. As much as science has progressed, atheism has gained momentum.

How can we build a good society?
What is good society made of?

Today the condition is that people do not see anything beyond science or believe it.
Hollow inventions of science have tried really hard to end people's faith in spiritualism.

Today people, abandoning their original purpose of human life (i.e to attain salvation) are just seeking to become rich and famous, they are desperate to achieve a higher position in their respective fields. Buying a big car, collecting countless money from their businesses, then spending extravagantly at weddings and creating wealth through it has become a tradition today. This showbusiness have almost destroyed the peace and Humanity.

How can we build a good society?
Money is temporary pleasure 

Seeing the ancient civilization of India, it is known that the citizens of our country lived peacefully by making huts under trees on the banks of a river or pond.  In addition, they had full faith in God.

Due to the divine blessings the trees were full of fruits in thay Era, even small plants were rich in fruits and flowers. Cereals were eaten less and forests, green vegetables and forest fruits were eaten in greater quantities.
We use to lived in houses that were made of stones. There was no money, no societal standards but there was a peace, which make us happy and satisfied with our lives. 


How can we build a good society?
Money can’t buy life

But after some time, the trend of education, technology, western outlook has increased among the people, due to which this benefit from the divine has stopped. Gradually the people of that era were influenced by the life of the rich class. If they did not prosper in the usual way, then they started collecting money by sinning.

Because of which humanity has completely fallen today.  Criminal activities have increased in the society, and people have started becoming atheists.


Solution by which Humanity can again can revived in our Society-


The revival of humanity and our society is possible only through spiritualism.
Saint Rampalji Maharaj is the only saint on earth who can resurrect humanity.
His spirituality methods have the power to change people's hearts and thoughts. If you change your thoughts, your actions will change. Our deteriorated systems will improve. The evils will end.  Human qualities will increase. Spirituality should be vigorously promoted, so that peace and mutual brotherhood can be re-established in India as well as all over the world.


How can we build a good society?
Saint of India

According to scripture based worship told by Sant Rampal Ji Maharaj, his millions of followers stay away from intoxication, bribery, theft, corruption etc. Fear of god made them live with proper dignity and respect. 
People of all India will be happy again if they practice true devotion told by Saint Rampal Ji Maharaj and can also attain complete salvation. After this, the whole world will follow India, there will be peace in the world.

To know more-
Watch Sadhna TV daily at 7:30 PM (IST)
Watch Ishwar Tv daily at 8:30 PM (IST) 

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गोवर्धन पूजा का महत्व

हिंदुओं   के   शुभ   त्योहारों   में   से   एक   गोवर्धन   पूजा   हिंदू   कैलेंडर   के   अनुसार   कार्तिक   शुक्ल   प्रतिपदा   को   अर्थात  ...