हर
साल श्रावण मास में लाखों की तादाद में कांवडिये सुदूर स्थानों से पदयात्रा करके
गंगा जल से भरी कांवड़ लेकर आते है और श्रावण की चतुर्दशी के दिन उस गंगा जल से
शिव मंदिरों में शिव का अभिषेक किया जाता है।
श्रावण महीने की इस
कांवड़ यात्रा को लेकर अलग-अलग धारणाएं हैं। कुछ लोगों के अनुसार, परशुराम पहले
कांवड़िये थे, तो कुछ ने श्रवण कुमार को त्रेतायुग का सबसे पहला कांवड़िया बताया।
प्रचलित मान्यता है की श्री रामचन्द्र जी पहले कांवड़िये थे और ऐसी मान्यता भी है कि
रावण ने सर्वप्रथम इस परंपरा की शुरुआत की थी। आज भी श्रद्धालु उपरोक्त मान्यताओं
के आधार पर ही इस परंपरा का पालन कर रहे हैं।
लेकिन प्रश्न ये उठता
है की-
कावड़ यात्रा करने से क्या हमे सुख, शांति, मोक्ष प्राप्त हो
सकता है?
क्या कावड़ यात्रा कर गंगा जल लाना शास्त्र अनुसार साधना है?
क्या शिवलिंग पर गंगा जल चढाने का प्रावधान गीता या वेदों में
वर्णित है?
आदि, तो आइये जानते है-
Kanwar Yatra 2020 |
कावड़ यात्रा करना पुण्य है या पाप-
वास्तविकता में शास्त्रों में कावड़ यात्रा करने, शिवलिंग पर
गंगाजल चढ़ाने आदि कर्मकांड करने का कहीं भी प्रावधान नहीं है। यह प्राचीन काल से
मान्यताओं के आधार पर देखा देखी में चली आरही प्रथा है जिसे करने का कोई लाभ नहीं
है। उल्टा पुण्य कमाना तो दूर कोसों दूर चल कर जाने से, पैरो तले सूक्ष्म जीवों को
मारने के पाप के भागी और बनते है।
“कबीर, पापी मन फूला फिरे मैं करता हूं रे धर्म।
कोटि पापकर्म सिर ले चला, चेत न चिन्हा भ्रम।।”
बरसात के दिनों में अनेक सूक्ष्मजीव बिलों से
बाहर निकल धरती पर आ जाते हैं ऐसे में कांवड़ यात्री पुण्य कमाने के उद्देश्य से
पैदल चलता है तो उनके पैरों के नीचे करोड़ों सूक्ष्मजीव मर जाते हैं जिसका पाप
उनके सिर पर रखा जाता है।
Kanwar yatra |
कबीर साहिब ने कहा है:- "करत है पुण्य, होत है पापम् ।"
वह पुण्य कमाने शिवजी को प्रसन्न करने चला था और
करोड़ों जीव हत्या का पाप अपने सिर ले आया।
क्या कावड़ यात्रा शास्त्र अनुकूल है ?
कावड़ यात्रा वास्तविकता में शास्त्र विपरीत
भक्ति है जिससे लोगों को भक्ति करते हुए भी कोई आध्यात्मिक लाभ नहीं हो रहा।
(गीता जी अध्याय 16 श्लोक 23 में प्रमाण है के जो व्यक्ति शास्त्रविधि को त्याग कर मनमाना आचरण करते है उनको ना तो कोई सिद्धि, मोक्ष तथा कोई सुख प्राप्त नहीं होता।अर्थार्थ
शास्त्र विरुद्ध की गई सभी भक्ति, साधना आदि व्यर्थ है।)
Kanwar yatra facts |
गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 तक
में कहा गया है कि जो भी तीनों गुणों से (रजगुण-ब्रह्मा से जीवों की उत्पत्ति,
सतगुण-विष्णु जी से स्थिति तथा तमगुण-शिव जी से संहार) जो कुछ भी हो रहा है उसका
मुख्य कारण मैं (ब्रह्म/काल) ही हूँ। (क्योंकि, काल को एक लाख मानव शरीर धारी
प्राणियों के शरीर को मार कर मैल को खाने का श्राप लगा मिला हुआ है) जो साधक मेरी
(ब्रह्म की) साधना न करके त्रिगुणमयी माया (रजगुण-ब्रह्मा जी, सतगुण-विष्णु जी,
तमगुण-शिव जी) की साधना करके क्षणिक लाभ प्राप्त करते हैं जिससे ज्यादा कष्ट उठाते
रहते हैं, साथ में संकेत किया है कि इनसे ज्यादा लाभ मैं (ब्रह्म-काल) दे सकता
हूँ, परन्तु ये मूर्ख साधक तत्वज्ञान के अभाव से इन्हीं तीनों गुणों
(रजगुण-ब्रह्मा जी, सतगुण-विष्णु जी, तमगुण-शिव जी) तक की साधना करते रहते हैं।
इनकी बुद्धि इन्हीं तीनों प्रभुओं तक सीमित है। इसलिए ये राक्षस स्वभाव को धारण
किए हुए, मनुष्यों में नीच, शास्त्र विरूद्ध साधना रूपी दुष्कर्म करने वाले, मूर्ख
मुझे (ब्रह्म/काल को) ही भजते हैं।
यदि किसी तीर्थ या धाम
पर जाने से भगवान खुश होते तो केदारनाथ और नीलकंठ जैसी भयानक दुर्घटनाये नहीं
होतीं। अगर श्रद्धालु के साथ कुछ अच्छा होता भी है तो यह मनुष्य का अपने प्रारब्ध
का कर्म फल ही होता है जिसे अपने इष्ट की कृपा मान लिया जाता है लेकिन पूर्ण
परमात्मा कविर्देव (कबीर) के अलावा प्रारब्ध के पाप क्षमा करने की सामर्थ्य किसी
अन्य देवता में नहीं है।
Kedarnath tragedy |
प्राचीन समय में सावन के महीने में साधु-संत घर से बाहर नहीं निकलते थे क्योंकि उनका मानना था कि श्रावण (सावन) के महीने में बारिश का मौसम होता है और ज्यादातर जीव, जंतु मिट्टी में चिपके रहते हैं जो पाँव के नीचे दबकर मरते हैं। इसी पाप से बचने के लिए इस महीने साधु-संत अपने घर में ही भक्ति किया करते थे। लेकिन वर्तमान नकली धर्म के ठेकेदारों ने कावड़ यात्रा की प्रथा शुरू कर दी, जिससे पैदल यात्रा करने से सड़कों पर असंख्य जीवों की पैरो तले हत्या होती है, इन्हीं पापों को ब्रह्म (काल) भक्तों के ऊपर डाल देता है यही आगे उनके नाश का कारण बन जाता है।
कावड़ यात्रियों के उत्पाद, भक्तो के लक्षण नहीं।
यह भी हमेशा देखा गया
है की कावड़ियों की हिंसाओं की खबरे सुर्खियों में रहती है। ये उत्पात मचाते है
तोड़ फोड़ करते है। इनका मकसद आस्था कम उपद्रव फैलाना ज़्यदा होता है।ये किसी
कानून का पालन नहीं करते, कावड़ लाते वक़्त चिलम, सुल्फा, शराब आदि का सेवन करते
है, भांग और गांजे के नशे में धुत
कई कांवड़ियों की यात्रा के दौरान दुर्घटना में कई मौतें भी हो चुकी है।, आखिर इससे ज़्यदा और क्या मिल सकता है ऐसी शास्त्र विरुद्ध भक्ति
से?
Kanwar yatra tragedy |
नकली धर्मगुरुओं, अज्ञानी
पंडितों ने समाज में ऐसी शास्त्रविरुद्ध, गलत साधनाये व्
क्रियाएं फैला कर आज हम सभी को भगवान से दूर कर दिआ है, जिस भक्ति से कोई लाभ ना हो वो भक्ती विधि ही गलत जानें।
कबीर जी की वाणी है-
"वेद पढे पर भेद न जाने, ये बांचै पुराण अठारा ।जड़ को अंधा पान खिलावै, ये भूलै सिरजनहारा ॥"
सतभक्ति से ही लाभ संभव है-
वेदों में प्रमाण है कि पूर्ण परमात्मा कबीर जी
ही पूजा के योग्य हैं तथा ब्रह्मा, विष्णु, शिव जी तो नाशवान प्रभु है उनकी भक्ति
पूर्ण मोक्षदायक नही है। प्रमाण:- शिव
महापुराण पृष्ठ सं. 24 से 26 विद्ध्वेश्वर संहिता तथा पृष्ठ 110 अध्याय 9 रूद्र
संहिता।
Hindi gods |
अतः सभी मानव समाज से हमारी प्रार्थना है कि
मनुष्य जीवन बहुत अनमोल है जो हमें सतभक्ति करके मोक्ष प्राप्त करने के लिए
प्राप्त हुआ है। यदि समय रहते पूर्ण गुरु (सतगुरु) धारण करके कबीर साहेब की
सतभक्ति नहीं की तो अंत समय में पछताने के अलावा कुछ हाथ नहीं लगेगा।
वर्तमान में संत रामपालजी महाराज ही एकमात्र संत है जो बिलकुल
शास्त्रानुसार सतभक्ति विधि बता रहें है जिससे हमारा मनुष्य जन्म सार्थक बन सकता
है व् मोक्ष प्राप्त हो सकता है।
इस सतभक्ति से साधकों को अद्भुत भौतिक और
आध्यात्मिक लाभ भी हो रहे हैं।
प्रमाणित जानकारी के
लिए प्रतिदिन देखें साधना चैनल शाम 7.30-8.30 पर।