शंका समाधान
प्रश्न-
जगत के लोग प्रश्न करते हैं संत रामपाल जी के भगत एनिवर्सरी बर्थडे त्यौहार पार्टीज में क्यों नहीं जाते, सेलीब्रेट क्यों नहीं करते?
जगत का मानना है कि मरना एक दिन सबको है पर उससे पहले छोटी-छोटी खुशियाँ सेलिब्रेट ना करके रोजाना क्यों मरते हो?
शंका समाधान-
संत रामपाल जी महाराज सत्संग में बताते है कि जगत और भगत के विचारों में हमेशा से ही विरोध रहा है। जगत अपने स्तर की बुद्धि और विवेक से सोचता है और भगत ज्ञान आधार से सोचकर कार्य करता है और जीवन जीता है।
जगत सोचता है कि छोटी छोटी खुशियां मनाने से भक्ति में क्या परहेज है?
सबसे पहले हमें यह जानना होगा कि सुख और दुख की परिभाषा क्या है।
सुख वो है जिससे आत्मिक खुशी, शांति और संतोष मिले।
इच्छाओं और विकारों से प्रेरित प्रत्येक कार्य दुख है। इच्छाओं की पूर्ति में जगत अपना सुख चैन शान्ति खो देता है वही उसका दुख है।
मन का स्वभाव है तमाम तरह की इच्छाएँ पैदा करना और एक इच्छा पूर्ति के बाद दूसरी नयी-नयी इच्छाएँ जागृत करना। मनुष्य की इच्छाएँ ही उसके दुख का सबसे बड़ा कारण है। लोगों की तमाम इच्छाएं बड़ा घर बनाए, बड़ी गाड़ी खरीदे, अपार बैंक बैलेंस बनाएं, अपना नाम कमाएं इत्यादि तमाम इच्छाएँ मनुष्य को हमेशा दुखी और अशांत रखती है। इनकी पूर्ति में ही वह दिन-रात कोल्हू के बैल की तरह घिसता रहता है।
यहाँ विचार करने वाली बात है प्रत्येक व्यक्ति की सभी चीजें प्राप्त करने की इच्छाएँ और लगन होती है लेकिन जो उसके भाग्य में निर्धारित होता है वही उसको मिलता है। अज्ञानता में वह इच्छाओं की पूर्ति के लिए भाग्य से अधिक पाने की कोशिश करता है और हमेशा दुखी और बैचेन रहता है।
मनुष्य की इच्छाएँ ही उसका सबसे बड़ा बोझ है जिसे वह जीवन भर ढोता रहता है और दुखी होता रहता है। जगत को यह ज्ञान नहीं होता कि उनकी तमाम इच्छाएं ही उसके दुख अशांति और बैचेनी का मूल कारण है। इच्छाओं की पूर्ति करने में ही मनुष्य सारा जीवन दौड़भाग करता है, चोरी झूठ कपट करने को तैयार रहता है। इच्छाएँ मनुष्य का गला घोटती है।
इच्छाएं और विकार मनुष्य को हमेशा परेशान रखते है। इससे बचने का उनके पास कोई उपाय नहीं है।
इच्छाओं और विकारों से उत्पन्न दुख ही मानव का गला घोटते है, पल-पल दुखी करते है और मारते हैं। इन विकारों से उत्पन्न दुख, असंतोष, निराशा और बेचैनी से दूर होने के लिए वह जीवन में छोटी-छोटी खुशियां ढूंढते हैं और उन्हें सेलीब्रेट कर स्वयं को सुखी समझते है, पर लोग यह भूल जाते हैं कि इस काल लोक में कोई भी सेलिब्रेशन त्यौहार उत्सव पार्टीज आपको सुखी नहीं कर सकती। बाहर से खुश होने का ढोंग अवश्य करते है पर अंदर से सबके आग लगी हुई है।
एक बार गुरू नानकदेव जी से उनके शिष्य ने कहा कि आप खुश कब होते हो तो नानक जी ने कहा कि इस गंदे लोक में किस चीज की खुशी मनाऊं यहां पर सबके सिर पर मौत नाच रही है... कब किसके साथ क्या घटना घटित हो जाए तो किस चीज की खुशी मनाऊं..
ना जाने काल कि कर डारे, किस विध ढल जा पासा वे।
जिन्हानुं सिर पर मौत खुडदगी, उन्हानुं कैसा हांसा वे।।
रोजाना समाचार पत्रों में खबरें पढ़ने को मिलती है कि त्यौहार पार्टी उत्सव मनाने गए हुए लोग किसी हादसे दुर्घटना और आपदा के शिकार होकर मर गये। जिस झूठी खुशी को वह मनाने गए थे वहीं उनकी मौत का जरिया बन गयी। जरा विचार करे यहां मनुष्य कौनसी खुशियां ढूंढने को तत्पर रहता है और जो लोग सेलिब्रेशन करके खुशियां मना रहे हैं उनके पास बचाव का कोई साधन नहीं है तो वह कितने दिन तक झूठी खुशी मना पाएंगे? जगत के लोग झूठी खुशी को पाने के पीछे भागते रहते है और पल-पल मरते है- जैसे कस्तूरी वाला मृग उसकी खुशबू से प्रभावित होकर उसे ढूंढने के लिए जगह-जगह भटकता रहता है पर उसकी नाभि में छुपी कस्तूरी को वह ढूढ़ नहीं पाता जिस कारण हमेशा परेशान और बेचैन रहता है, यही स्थिति जगत के लोगों की है।
क्या बर्थडे एनिवर्सरी त्यौहार या पार्टी मनाने से स्थाई रूप से खुशी मिल जाएगी?? सेलिब्रेशन करने मात्र से कोई खुशियां नहीं मिलती। यदि इन चीजों से वास्तव में खुशियां मिलती तो संत जी इन्हें सेलीब्रेट का आदेश भगत समाज को जरूर देते।
भक्तों की असली खुशी उनकी भक्ति है। भक्ति करने से भगत को आत्मिक सुख शांति और संतोष मिलता है। यही जीवन का सबसे बड़ा सुख है। मर्यादा में रहकर सत् भक्ति करने से भगत की इच्छाएं और विकार दब जाते है उन्हें परेशान नहीं करते जिस कारण से उन्हें संतोष और शांति मिलती है, यही भगतों की खुशी है। ज्ञान और भक्ति से उनकी इच्छाएं दब जाती है ना बड़ा घर चाहिए, ना बड़ी कार, ना बैंक बैलेंस करना और ना ही इस झूठे लोक में अपना नाम कमाना। वे भगवान की भक्ति करके और ज्ञान पर आधारित होकर हमेशा खुश रहते है।
परमात्मा बताते है...
कबीर, चाह मिटी चिंता गयी, मनुवा बेपरवाह।
जिसको कुछ नहीं चाहिए, सो जग शहंशाह।।
गरीब, अकल अलूने दिखते, ये सर्व अकल के मूल।
हरदम रटै हरिनाम को, ये झूले अनहद झूल।।
भगत भक्ति करके हमेशा राम नाम के झूले में झूलता है खुशी मनाता है। यही उनकी खुशी है और नशा है। भक्ति करने पर जो खुशी और नशा होता है वह जगत के किसी कामों में नहीं होता। यह बात जगत के लिए समझना कठिन हो सकता है।
नानक जी ने कहा कि...
नाम खुमारी नानका, या चढी रहे दिन-रात।
आफू छूतरा और शराब, उतर जात प्रभात।।
भक्ति करने पर परमात्मा जरूरते पूरी करता है तब अधिक पाने की इच्छाएँ नहीं रहती। भगत को परमात्मा यहां पर भी सुख देता है और मृत्यु पश्चात् सतलोक में भी अपार सुख देगा।
और जो भक्ति नहीं करता उसे काल भगवान यहां पर भी पल-पल दुख देता है और मरने के बाद गधा बनाकर महादुख देता है।
इस गंदे लोक और यहां के झूठे सुख-दुख से पीछा छुड़वाकर सदा-सदा के लिए सतलोक में जाना ही हमारा परम उद्देश्य है वही हमें परम सुख और स्थायित्व मिलेगा।
Great 👌👍
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